Biography

गोपाल प्रसाद व्यास

गोपाल प्रसाद व्यास की हास्य कविता ‘हाय न बूढ़ा मुझे कहो तुम’

हाय, बूढ़ा मुझे कहो तुम!

शब्दकोश में प्रिये, और भी बहुत गालियां मिल जाएंगी

जो चाहे सो कहो, मगर तुम

मेरी उमर की डोर गहो तुम!

हाय, बूढ़ा मुझे कहो तुम!

क्या कहती हो-दांत झड़ रहे?

अच्छा है, वेदान्त आएगा।

दाँत बनाने वालों का भी

अरी भला कुछ हो जाएगा।

बालों पर रही सफेदी

बालों पर रही सफेदी,

टोको मत, इसको आने दो।

मेरे सिर की इस कालिख को

शुभे, स्वयं ही मिट जाने दो।

जब तक पूरी तरह चांदनी

नहीं चांद पर लहराएगी,

तब तक तन के ताजमहल पर

गोरी नहीं ललच पाएगी।

 पंडित गोपालप्रसाद व्यास को एक हास्य कवि के रूप में भी जाना जाता हैं आज गोपाल दास के बारे में जानते हैं -: पंडित गोपालप्रसाद का जन्म- 13 फरवरी 1915, गोवर्धन, मथुरा , में हुआ था , पंडित गोपालप्रसाद व्यास हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे। वे ब्रजभाषा और पिंगल के मर्मज्ञ माने जाते थे। व्यास को भारत सरकार ने पद्मश्री, दिल्ली सरकार ने शलाका सम्मान और उत्तर प्रदेश सरकार ने यश भारती सम्मान से विभूषित किया था। दिल्ली में हिंदी भवन के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। लाल किले पर हर वर्ष होने वाले राष्ट्रीय कवि सम्मेलन की शुरुआत में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है। पिता  ब्रजकिशोर शास्त्री। माता  चमेली देवी। तीन पुत्र- जगदीश, गोविन्द, ब्रजमोहन। तीन पुत्रियां-श्रीमती पुष्पा उपाध्याय, श्रीमती मधु शर्मा और डॉ॰ रत्ना कौशिक तथा एक दर्जन से ऊपर पौत्र-पौत्रियां एवं दौहित्र-दौहित्रियां।

शिक्षाः प्रारंभिक शिक्षा पहले पारसौली के निकट भवनपुरा में। उसके बाद अथ से इति तक मथुरा में केवल कक्षा सात तक। स्वतंत्रता-संग्राम के कारण उसकी भी परीक्षा नहीं दे सके और स्कूली शिक्षा समाप्त हो गई। पिंगल पढ़ा स्व० नवनीत चतुर्वेदी से। अंलकार, रस-सिद्धांत पढ़े सेठ कन्हैयालाल पोद्दार से। नायिका भेद का ज्ञान सैंया चाचा से और पुरातत्व, मूर्तिकला, चित्रकला आदि का डॉ॰ वासुदेवशरण अग्रवाल से। विशारद और साहित्यरत्न का अध्ययन तथा हिन्दी के नवोन्मेष का पाठ पढ़ा डॉ॰ सत्येन्द्र से

विशेषः ब्रजभाषा के कवि, समीक्षक, व्याकरण, साहित्य-शास्त्र, रस-रीति, अलंकार, नायिका-भेद और पिंगल के मर्मज्ञ। हिन्दी में व्यंग्य-विनोद की नई धारा के जनक। हास्यरस में पत्नीवाद के प्रवर्तक। सामाजिक, साहित्यिक, राजनैतिक व्यंग्य-विनोद के प्रतिष्ठाप्राप्त कवि एवं लेखक और ‘हास्यरसावतार’ के नाम से प्रसिद्ध।

पत्रकारिता के क्षेत्र में: ‘साहित्य संदेश’ आगरा, ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ दिल्ली, ‘राजस्थान पत्रिका’ जयपुर, ‘सन्मार्ग’, कलकत्ता में संपादन तथा दैनिक ‘विकासशील भारत’ आगरा के प्रधान संपादक। स्तंभ लेखन में सन्‌ 1937 से अंतिम समय तक निरंतर संलग्न। ब्रज साहित्य मंडल, मथुरा के संस्थापक और मंत्री से लेकर अध्यक्ष तक। दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संस्थापक और 35 वर्षों तक महामंत्री और अंत तक संरक्षक। श्री पुरुषोत्तम हिन्दी भवन न्यास समिति के संस्थापक महामंत्री के पद पर अंत तक रहे। लाल किले के ‘राष्ट्रीय कवि-सम्मेलन’ और देशभर में होली के अवसर पर ‘मूर्ख महासम्मेलनों’ के जन्मदाता और संचालक।

पद्म श्री सम्मान: सन् 1965 में साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में ।

गोपाल प्रसादजी कि मृत्यु शनिवार, 28 मई 2005, प्रातः 6 बजे, अपने निवास बी-52, गुलमोहर पार्क, नई दिल्ली पर हो गई थी ।

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