हम जब आध्यात्मिक मस्तिष्क वाले, दुनिया में सफल व्यक्ति की बात करते हैं , तो अनेक भ्रांतियों का सामना करना पड़ता हैं |
पहली यह कि अध्यात्म हमारी महत्वाकांक्षओं और उपार्जन के उत्साह को मार डालता हैं | यह गलत है |अध्यात्म मात्र हमारे उपार्जन के उद्देश्य को नया मार्गदर्शन देता है | यह हमें ऐसा बनता हैं , कि हम बहुत बड़ी सफलता प्राप्त करना चाहेंगे, ताकि हमारी पास दूसरों की सहयता करने के लिए संसाधन हो | गीता में श्रीकृष्ण और अर्जुन की कथा इस विषय में बहुत कुछ समझती है : लड़ो और दूसरों के सहायता करने के लिए उपार्जित करो , लेकिन आंतरिक रूप से अपनी निजी जीवन में संतुष्ट रहो |
दूसरो, कि आध्यात्मिक लोग अपने मूल्यों के कारण व्यापार में पीछे छूट जाते हैं | साधु और साँप की कहानी हमें समझती हैं की हम कैसे अपने मूल्यों से जुड़े रहकर भी व्यापार में सतर्क और ईमानदार रह सकते हैं |
यधपि हम जितना चाहे , उतना धन अर्जित कर सकते हैं और सेवा में उसका उपयोग कर सकते हैं, फिर भी हमें उसकी क्षमता के प्रति सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि वह हमें उद्देश्य से भटका सकता है |