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News Cover Story – बचपन में पोलियोग्रस्त हो गई थीं, लेकिन आज दुनिया का सबसे बड़ा ‘अपना घर’ आश्रम चला रहीं |

56 वर्षीया बबीता के पैर, दायां हाथ काम नहीं करता; फिर भी 100 बीघा आश्रम में 6500 विक्षिप्तों का सहारा |

राजस्थान के भरतपुर में दुनिया के सबसे बड़े ‘अपना घर’ आश्रम के 6500 से ज्यादा असहाय लोगों को 56 वर्षीया बबीता गुलाटी संभालती हैं। खास बात यह है कि वे खुद भी पोलियोग्रस्त हैं। बचपन में उनके दोनों पांव और दायां हाथ अपंग हो गए, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। बीकॉम किया और अपना घर आश्रम में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी 2009 में शुरू की। यहीं उन्हें अपनी जिंदगी का मकसद मिल गया। साल भर में ही नौकरी छोड़ दी और वालंटियर बन गई। अब वे 100 बीघा में फैले अपना घर की प्रशासनिक अधिकारी और अध्यक्ष हैं। यहां वे मानसिक रूप से विक्षिप्त अथवा शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के रेस्क्यू, रजिस्ट्रेशन, आवास, भोजन, चिकित्सा, स्वच्छता, डिमांड, पुनर्वास, प्रशिक्षण, प्रोडेक्शन, अध्यापन और अंतिम विदाई तक की सारी व्यवस्थाएं करती हैं। इसमें उनकी मदद 480 कर्मचारियों का स्टाफ करता है। इसलिए बबीता आश्रम के आवासियों के दिल में बसती हैं और शिशु से लेकर उम्रदराज के लिए वे बबीता दीदी  हैं। उनके काम के कोई समय घंटे निर्धारित नहीं हैं। अलसुबह जगने से लेकर देर रात सोने तक बबीता ऑटोमैटिक व्हीलचेयर पर आश्रम में मॉनीटरिंग करती मिलेंगी। चौबीस घंटे वह फोन अटेंड करती हैं।

  • देश-दुनिया के 62 आश्रमों के 15 हजार लोगों की देखभाल संस्था के देश-विदेश में फैले 62 आश्रमों में रह रहे 15 हजार आवासियों की भी प्रशासनिक व्यवस्था संभालती हैं। इसलिए उनका मोबाइल घनघनाता ही रहता है।
  • काम के इस भारी भरकम बोझ के बीच बबीता अक्सर एक गीत ‘इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल’ गुनगुनाती हैं। कहती हैं, यही सच है।
  • एक सवाल पर बबीता कहती हैं कि दिमाग को अपाहिज मत रखो, फिर कोई काम आप को बोर नहीं करेगा। बल्कि काम का बोझ बिजली की तरह उत्साहित करता है।
  • बबीता कहती हैं, आश्रम के सभी आवासी हमारे लिए असहाय नहीं, बल्कि प्रभु जी हैं। यानी ठाकुर जी ने हमें उनकी सेवा का सौभाग्य दिया है। इसे कर्तव्य समझते हैं।

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