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poem

The voice of the women

में कुछ उलझी सी, कुछ सुलझी सी हूँ | 

नहीं समझ पाओगे मुझे | 
दर्द को छुपाकर , मुस्कुराने की आदत है ,”मुझे “
अपने आप को भुलाकर , अपनों के लिए जीने की आदत है ,”मुझे “
ना कुछ माँगा , ना कुछ चाहा ,
   बदला मेने मुझको | 
आदतों को बदला , चाहतों को बदला 
     भले मेरे अरमानों ने 
            अपनी करवटों को बदला | 
दिन की रोशनी खियालो  मे गई 
रात की नींद बच्चों को सुलाने में गई 
सारी उम्र घर को सजाने में गई | 
     ” फिर भी नहीं समझा “मुझे” |
माँ लक्ष्मी की , माँ सरस्वती की 
    पूजा करो , चाहे कितनी 
   या करो 9 दिन का अखंड उपवास 
 सम्मान ना करा नारी का 
  सब बेकार गई  आरधना तुम्हारी | 
में कुछ उलझी सी , कुछ सुलझी सी हूँ  
समझो |  “मुझे “





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