बाबा केदारनाथ धाम
बाबा केदारनाथ धाम मंदिर से मंदिर के इतिहास से जुड़ी कई कहानियां भी प्रचलित हैं। | केदारनाथ धाम में हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। धाम के कपाट हर वर्ष अप्रैल या मई में खोले जाते हैं और भैयादूज पर शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं। शीतकाल में बाबा केदार की चल विग्रह उत्सव डोली को ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर लाया जाता है। छह माह के लिए बाबा यहीं विराजमान रहते हैं।
केदारनाथ धाम का उल्लेख स्कंद पुराण के केदार खंड में मिलता है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में हुआ है। पांडवों के वंशज जन्मेजय ने यहां इस मंदिर की स्थापना की थी। बाद में आदि शंकराचार्य द्वारा इसका जीर्णोद्धार कराया गया था।
मंदिर के संबंध में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। मान्यता है कि महाभारत के बाद पांडव अपने गोत्र बंधुओं की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव की शरण में जाना चाहते थे। और इसके लिए वह भगवान शिव की खोज करने हिमालय की ओर गए। तब भगवान शिव अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे।
पांडव भी उनके पीछे केदार पर्वत पहुंच गए। तब भगवान शिव ने पांडवों को आता देख भैंसे का रूप धारण कर लिया और पशुओं के बीच में चले गए। भगवान शिव के दर्शन पाने के लिए पांडवों ने एक योजना बनाई और भीम ने विशाल रूप धारण कर अपने दोनों पैर केदार पर्वत के दोनों और फैला दिए।
सभी पशु भीम के पैरों के बीच से गुजर गए, लेकिन भैंसे के रूप में भगवान शिव भीम के पैर के नीचे से निकले। तभी भगवान शिव को पहचान कर भीम ने भैंसे को पकड़ना चाहा तो वह धरती में समाने लगा। तब भीम ने भैंसे का पिछला भाग कस कर पकड़ लिया।
भगवान शिव पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर पाप से मुक्त कर दिया। कहा जाता है कि तभी से भगवान शिव की यहां भैंसे की पीठ की आकृति के रूप में पूजे जाते हैं। मान्यता है कि इस भैंसे का मुख नेपाल में निकला, जहां भगवान शिव की पूजा पशुपतिनाथ के रूप में की जाती है।
16-17 जून 2013 को आई आपदा के बाद केदारनाथ में हुई तबाही का मंजर बेहद खौफनाक था। अमरनाथ की तरह यहां भी चौराबाड़ी झील में बादल फटने से भारी मलबा और विशाल बोल्डर ने तबाही ला दी थी। तब शांत केदार घाटी में अचानक मचे कोलाहल ने सबको चौंका दिया था। किसी ने सोचा नहीं था कि मंदाकिनी नदी विकराल रूप लेकर तबाही मचा देगी।
लेकिन बाबा के चमत्कार से उस चट्टान की मदद से मंदिर भी बच गया और अंदर बैठे लोगों की भी जान बच गई। इस घटना को 9 साल हो चुके हैं, लेकिन ये शिला आज भी केदारनाथ के पीछे आदि गुरु शंकराचार्य की समाधी के पास मौजूद है। आज इस शिला को भीम शिला के नाम से जाना जाता है|