बचपन से चुल – बुली होती है बेटिया
पापा की लाड़ली माँ की दुलारी
होती हैं बेटियाँ
घर की रोनक
आँगन की हँसी होती हैं बेटियाँ
भाई की कलाई की शोभा
होती हैं बेटिया
जब जाती है ससुराल
रुला कर जाती है सबको
अपने घर की रोनक को
इस भरोसे से भेजते हैँ
जैसे नाजो से पाला , पलकों पर बैठाया
वैसे ही ससुराल में रहेंगी वो
उसकी हर खुशी हर ज़िद को
पूरा करने के लिए एक
परिवार मिल गया है
उसकी खुशियों का खियाल रखने वाला
एक हमसफ़र मिल गया है
वो चुल – बुली से बेटी
अब खुश रहे या न रहे
घरवलो को खुश रखने लगी
उसकी जिद पूरी हो या न हो
परिवार की बात मानने लगी
अब वो चुल बुली सी बेटी कही खो सी गई |