poem

बेटी बचाओं (दोपहर की कड़कती धूप में)

नवजात बेटी का सवाल :-

दोपहर की कड़कती धूप में

रात के अंधेरे में सुनसान सड़क पर

काँटे भरी  झाड़ियो 

क्यों फेंका  तुमने मुझको | 

क्यों नहीं काँपे हाथ तुम्हारे 

      जब डाला कचरे में मुझको 

क्यों नहीं आए आँखो में आँसू 

      मेरे रोने से |

इतनी निर्दयी कैसे बनी 

मेरी मुस्कान भी रोक नहीं पाई 

क्यों फेंका  तुमने मुझको | 

9 महीने सींचा था 

      तुमने आपने खून से मुझको 

फिर क्यों नहीं लड़ पाई 

इस दुनिया से 

क्यों फेंका  तुमने मुझको | 

इच्छा अपने दिल की चुनना थी 

इस दुनिया की नहीं सुनना थी 

जिसने दर्द दिया था तुमको 

उसका बदला लेती में 

क्यों फेंका तुमने मुझको | 

मेरी पहचान छीन ली तुमने 

अपने दिल का टुकड़ा फेंक दिया 

     “अब में लावारिस कहलाऊंगी “

 “अब में लावारिस कहलाऊंगी “

क्यों फेंका  तुमने मुझको | 

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