तैर रहा था मैं
तैर रहा था मैं , वह था सागर
आती रहीं लहरें एक-एक कर
तैरता जा रहा था मंजिल की ओर
पर एक तेज लहर, गई झकझोर |
बहा ले चली जिधर था उसे जाना
ले चली दूर, देर तक मेरा जोर चला न
तेज लहरों में गुम होने को था छन में
हाँ, तभी हौसले की बात कौंधी मन में
हर ताकत को दे मात ललक मंजिल पाने की
अदम्य साहस से जगी शक्ति जीत जाने की
बदली सोच, हिम्मत से पल में, बदली चाल
खोया विश्वास लौटा , भरोसा हुआ बहाल
जीत सकता हूँ मैं ,जीत होंगी मेरे नाम
लहरों से लड़ने में खोया बल फिर आया काम
लहरों से लड़ने में खोया बल फिर आया काम
यूँ मिली मुझे मंजिल ,
हुआ मकसद हासिल |
नवंबर 2004 में जब ” ए पी जे अब्दुल कलाम जी ” कार -निकोबार द्वीप के आसपास सुनामी से प्रभावित इलाके के हवाई दौरे पर थे | तब कलाम जी ने यह कविता लिखी थी |