अयोध्या राम मंदिर
22 जनवरी, 2024 को राम मंदिर में भगवान राम की प्राण-प्रतिष्ठा हैं,आज हम राम मंदिर के इतिहास के बारे में जानते हैं | बहुत संघर्ष और मेहनत के बाद आज हमारी मेहनत रंग लाई हैं भगवान राम उनके घर वापिस आ रहे हैं | इस दिन पुरे भारत में दीवाली की तहत उत्सव मनाया जाएगा |
पौराणिक कथाओं :–
पौराणिक कथाओं और धर्म ग्रंथों के आधार पर पहला राम मंदिर तय हुई परंपरागत धारणाओं के अनुसार अयोध्या के पवित्र श्री रामजन्मभूमि मंदिर के इतिहास का विवरण कुछ इस प्रकार है। जब भगवान श्रीराम प्रजा सहित बैकुंठ धाम चले गए तो पूरी अयोध्या नगरी (मंदिर-राज महल-घर-द्वार) सरयू में समाहित हो गई। मात्र अयोध्या का भू-भाग ही बच गया और वर्षों तक यह भूमि यूं ही पड़ी रही। बाद में कौशांबी के महाराज कुश (राम के पुत्र कुश )ने अयोध्या को फिर से बसाया। इसका वर्णन कालिदास के ग्रंथ ‘रघुवंश’ में मिलने की बात कही जाती है। लोमश रामायण के अनुसार उन्होंने ही सर्वप्रथम पत्थरों के खंभों वाले मंदिर का अपने परम पिता की पूज्य जन्मभूमि पर निर्माण करवाया। वहीं जैन परंपराओं के मुताबिक अयोध्या को ऋषभदेव ने फिर से बसाया था।
इतिहास :-
हिन्दुओं की मान्यता है कि श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और उनके जन्मस्थान पर एक भव्य मन्दिर विराजमान था | 1525 में राम जन्मभूमि मंदिर को बाबर के सेनापति मीर बांकी ने ध्वस्त करवाया था. बाबरी मस्जिद की तीन गुंबद थी जिसके बाहरी हिस्से में एक चबूतरे में श्रीराम के बाल स्वरूप की पूजा होती थी. इसे राम चबूतरा कहते थे लेकिन 1949 में बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे वही मूर्ति निकली जो सदियों से राम चबूतरे पर विराजमान थी.
1859 में राम चबूतरे पर फिर से पूजा की मिली इजाजत राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद को लेकर जन्मभूमि के आसपास के इलाके में पहली बार 1853 में दंगों का जिक्र मिलता है। 1859 में अंग्रेजों ने इस विवाद को रोकने लिए मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं का राम चबूतरे पर पूजा-अर्चना की इजाजत दी। 1885 में पहली बार महंत रघबीर दास बाबरी मस्जिद के पास मंदिर निर्माण को लेकर फैजाबाद कोर्ट में एक याचिका लगाई, जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में इस स्थान को मुक्त करने एवं वहाँ एक नया मन्दिर बनाने के लिये एक लम्बा आन्दोलन चला।
राम मन्दिर अयोध्या में राम जन्मभूमि के स्थान पर बनाया जा रहा एक हिन्दू मन्दिर है जहाँ रामायण के अनुसार, हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता भगवान श्रीराम का जन्मस्थान है। मन्दिर निर्माण की पर्यवेक्षण श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र कर रहा है। 5 अगस्त 2020 को भारत के प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भूमिपूजन अनुष्ठान किया गया था और मन्दिर का निर्माण आरम्भ हुआ था।
विवाद का हिंसक रूप दिसम्बर 1992 में बढ़ गया जब बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ। विभिन्न शीर्षक और कानूनी विवाद भी हुए, जैसे कि अयोध्या अध्यादेश, 1993 में निश्चित क्षेत्र के अधिग्रहण का मार्ग। 2019 अयोध्या विवाद पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय लिया गया था कि विवादित भूमि को सरकार द्वारा गठित एक ट्रस्ट को सौंप दिया जाए। गठित ट्रस्ट श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र था। 5 फरवरी 2020 को संसद में घोषणा की गई थी कि द्वितीय मोदी मन्त्रालय ने मन्दिर निर्माण की एक योजना को स्वीकार कर लिया है।
राम मंदिर डिजाइन :-
राम मंदिर के लिए मूल डिजाइन 1988 में अहमदाबाद के सोमपुरा परिवार द्वारा तैयार किया गया था। सोमपुर कम से कम 15 पीढ़ियों से दुनिया भर के 100 से अधिक मंदिरों के मंदिर के डिजाइन का हिस्सा रहा है। राम मंदिर के लिए एक नया डिज़ाइन, मूल डिज़ाइन से कुछ बदलावों के साथ, 2020 में सोमपुरवासियों द्वारा तैयार किया गया था। मंदिर 235 फीट चौड़ा, 360 फीट लंबा और 161 फीट ऊंचा होगा। मंदिर के मुख्य वास्तुकार चंद्रकांत सोमपुरा के साथ उनके दो बेटे निखिल सोमपुरा और आशीष सोमपुरा भी हैं, जो आर्किटेक्ट भी हैं। सोमपुरा परिवार ने राम मंदिर को ‘नागरा’ शैली की वास्तुकला के बाद बनाया है, जो भारतीय मंदिर वास्तुकला के प्रकारों में से एक है।
मंदिर परिसर में एक प्रार्थना कक्ष होगा, “एक रामकथा कुंज (व्याख्यान कक्ष), एक वैदिक पाठशाला (शैक्षिक सुविधा), एक संत निवास (संत निवास) और एक यति निवास (आगंतुकों के लिए छात्रावास)” और संग्रहालय और अन्य सुविधाएं जैसे एक कैफेटेरिया। दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हिंदू मंदिर होगा। प्रस्तावित मंदिर का एक मॉडल 2019 में प्रयाग कुंभ मेले के दौरान प्रदर्शित किया गया था।
जिस दिन का करोड़ों देशवासियों को इंतजार था, वह नजदीक आ गया है। 22 जनवरी, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रामलला के श्री विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने अयोध्या आएंगे। दोपहर 12.30 बजे प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के निमंत्रण को स्वीकार करते हुए पीएम मोदी ने इस ऐतिहासिक अवसर का साक्षी बनने को अपने लिए सौभाग्य की बात बताया। इस मौके पर देश के 4000 संत-महात्मा और समाज के 2500 प्रतिष्ठित महानुभाव उपस्थित रहेंगे।