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Success Story – इसरो के नए चेयरमैन -डॉ. वी. नारायणन |

चंद्रयान 3 की सफलता के सूत्रधार थे नारायणन अब भारतीयों को चांद पर ले जाने का लक्ष्य सामने

बचपन अभावों में बीता। उनके पिता चाहते थे कि किसी तरह नारायणन पॉलिटेक्निक कर नौकरी करने लगें ताकि घर की आर्थिक स्थिति सुधर जाए।

चर्चा में क्यों:- इसरो के नए चेयरमैन बनाए गए हैं। वे 14 जनवरी को वर्तमान चेयरमैन एस. सोमनाथ की जगह लेंगे।

जन्म: 1964 (करीब 60 वर्ष, तमिलनाडु

शिक्षा: आईआईटी खड़गपुर से क्रायोजेनिक

इंजीनियरिंग में एमटेक, पीएचडी

परिवारः पत्नी-कविता राज एनके, बेटी-दिव्या, बेटा-कालेश।

कन्याकुमारी जिले का एक साधारण गांव मेलाकट्टुविलई। यहां के सरकारी प्राथमिक स्कूल में सिर्फ एक कमरा था, जिसे पार्टिशन कर तीन हिस्सों में बांटा गया था। इसमें एक से तीन तक की कक्षाएं लगती थीं। चौथी और पांचवी की कक्षा कभी पेड़ों के नीचे तो कभी चर्च के परिसर पर लगती। जमीन पर बैठकर ही पढ़ना पड़ता था। किताब में छपी किसी कहानी की तरह लगने वाला बचपन का यह किस्सा है इसरो के नए चेयरमेन डॉ. वी नारायणन का।

एक यूट्यूब चैनल के साथ चर्चा के दौरान नारायणन बताते हैं कि चौथी कक्षा तक वे औसत छात्र थे, लेकिन छठी कक्षा के बाद उन्होंने पढ़ाई को गंभीरता से लिया। हालांकि इस दौरान भी उनका लक्ष्य होता था कक्षा में पहला स्थान लाना। इसरो के पूर्व चेयरमैन के. सिवन एक साक्षात्कार में वी. नारायणन की तारीफ करते हुए उन्हें काफी कुछ अपने जैसा बताते हैं। परिवारों से आते हैं। दोनों ने तमिल माध्यम से सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की और कड़ी मेहनत से इस मुकाम तक पहुंचे। ‘नारायणन के सहकर्मियों के अनुसार वे शालीन, लेकिन अनुशासनप्रिय वैज्ञानिक हैं, जो बिना दिखावे के अपने काम में जुटे रहते हैं। हालांकि नारायणन ने कभी भी वैज्ञानिक बनने का नहीं सोचा था। उनके पिता चाहते थे कि किसी तरह पॉलिटेक्निकं करके नारायणन कोई नौकरी जॉइन कर लें ताकि कि परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर सके। इसीलिए 12वीं के बाद उन्होंने पॉलिटेक्निक की जॉइन किया था।

बचपनः घर में बिजली तक नहीं थी, दसवीं में किया टॉप

तमिलनाडु के मेलाकडूविलई गांव में एक किसान परिवार में जन्मे नारायणन का बचपन साधारण लेकिन संघर्षों से भरा था। उनका परिवार इतना साधनहीन था कि उनकी 8वीं की पढ़ाई तक घर में बिजली भी नहीं थी। पिता सी. वत्रीयापेरुमल किसान थे जबकि मां एस. थंगम्मल घर संभालती थीं। उनके तीन भाई और दो बहनें भी थीं। नारायणन जब 9वीं कक्षा में पहुंच गए तब उनके घर पर बिजली का कनेक्शन पहुंचा। इसके बाद 10वीं में उन्होंने स्कूल में टॉप किया।

नौकरी के रोचक किस्से – नारायणन ने कुछ समय मद्रास रवाड़ में नौकरी की। खास बात यह थी कि उन्होंने इसके लिए आवेदन ही नहीं किया था। कंपनी ने तमिलनाडु पॉलिटेक्निक के टॉप रैंकर्स का बायोडेटा इक‌ट्ठा कर कॉल लेटर भेज दिए थे। साक्षात्कार के बाद कुल 27 छात्रों में से 3 का चयन हुआ, जिसमें नारायणन भी थे। हालांकि 4 सप्ताह बाद उन्होंने बीएचईएल जॉइन कर लिया। यहां से इसरो पहुंचे।

करियर : स्पेसक्राफ्ट ऑपरेशन के विशेषज्ञ – नारायणन ने शुरुआती पढ़ाई तमिलनाडु बोर्ड से की। मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा के बाद वे क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग में एमटेक करने के लिए आईआईटी खड़गपुर पहुंच गए। यहां से उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी भी की। उनकी विशेषज्ञता वाली क्रायोजेनिक तकनीक बेहद कम तापमान पर पदार्थों के व्यवहार से संबंधित है। नारायणन ने 1984 में इसरो जॉइन किया। 2018 में लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स के निदेशक बने। वे रॅरॉकेट व स्पेसक्राफ्ट ऑपरेशन के विशेषज्ञ हैं।

रोचक … इनके समाधान से ही चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग तय हुई थी

जुनून: आईआईटी में मेडल जीतने दिन-रात की पढ़ाई – नारायणन आईआईटी खडगपुर में पढ़ रहे थे। एक दिन तत्कालीन डायरेक्टर ने कहा कि जिन भी छात्रों का 9 सीजीपीए से अधिक होगा, उन्हें सिल्वर मेडल दिए जाएंगे। इतना सुनते ही नारायणन ने तय कर लिया कि मेडल उन्हें ही जीतना है। दिन-रात पढ़ाई कर पहली रैंक हॉसिल की और मेडल जीत लिया।

उपलब्धियां : स्पेस कमीशन के भी अध्यक्ष होंगे नारायणन – रकिट से संबंधित टेक्नोलॉजी के लिए एएसआई अवॉर्ड उन्हें मिल चुका है।

इसरो चीफ के साथ ही डॉ. नारायणन स्पेस कमीशन के भी अध्यक्ष होंगे।

चंद्रयान-2 की विफलता के बाद नारायणन के बताए गए समाधान ने ही चंद्रयान-3 मिशन सफलतापूर्वक लैंडिंग तय की थी।

बड़े लक्ष्य : गगनयान से लेकर चांद पर पहुंचने तक का मिशन

गगनयान-1: यह एक मानव रहित टेस्ट मिशन होगा जो अंतरिक्ष में मानव मिशन के लिए परीक्षण के रूप में काम करेगा।

चंद्रयान-4 मून मिशन इसके जरिए चांद तक पहुंचने की कोशिश की जाएगी।

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन: अंतरिक्ष में देश का अपना स्टेशन स्थापित किया जाएगा।

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