शिव महिमा
शिव महायोगी हैं और सांसारिक भी | वे ध्यानस्थ भी हैं और त्रिकालदर्शी भी |
भोले भगवान भी हैं और भक्त भी | शीर्ष भी हैं और शून्य भी |
शिवरात्रि पर्व पर जानते हैं शिव महिमा और शिव पार्वती विवाह कथा के बारे मे -:
शिव पार्वती की विवाह कथा -:
भगवान शिव के विवाह के बारे में पुराणों में वर्णन मिलता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने सबसे पहले सती से विवाह किया था. भगवान शिव का यह विवाह बड़ी जटिल परिस्थितियों में हुआ था. सती के पिता दक्ष भगवान शिव से अपने पुत्री का विवाह नहीं करना चाहते थे लेकिन ब्रह्मा जी के कहने पर यह विवाह सम्पन्न हो गया. एक दिन राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान कर दिया जिससे नाराज होकर माता सती ने यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर ली. इस घटना के बाद भगवान शिव तपस्या में लीन हो गए. उधर माता सती ने हिमवान के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया. तारकासुर नाम के एक असुर का उस समय आतंक था. देवतागण उससे भयभीत थे.
तारकासुर को वरदान प्राप्त था कि उसका वध सिर्फ भगवान शिव की संतान ही कर सकती है. उस समय भी भगवान शिव अपनी तपस्या में लीन थे. तब सभी देवताओं ने मिलकर शिव और पार्वती के विवाह की योजना बनाई. भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव को भेजा गया लेकिन वह भस्म हो गए. समाधि टूटने के बाद भगवान विष्णु ने भगवान शंकर से पार्वती को पुन: अंगीकार करने की प्रार्थना की। भगवान शंकर ने सप्तऋषियों को पार्वती की परीक्षा लेने के लिए भेजा। पार्वती ने केवल शिव को ही अपना वर चुनने की बात कही। पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए 14 हजार वर्षों की तपस्या : 14 हजार वर्ष कठिन तपस्या से भगवान भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर पार्वती से वरदान मांगने काे कहा। पार्वती ने शिव से वरदान मांगते हुए कहा कि वह उनकी अर्द्धागनी जन्मांतर बनकर रहना चाहती है। भगवान ओढर दानी ने पार्वती को सदैव अर्द्धांगनी बने रहने का वरदान दे दिया।देवताओं की विनती पर शिव जी पार्वती जी से विवाह करने के लिए राजी हुए. विवाह की बात तय होने के बाद भगवान शिव की बारात की तैयार हुई. इस बारात में देवता, दानव, गण, जानवर सभी लोग शामिल हुए. भगवान शिव की बारात में भूत पिशाच भी पहुंचे. ऐसी बारात को देखकर पार्वती जी की मां बहुत डर गईं और कहा कि वे ऐसे वर को अपनी पुत्री को नहीं सौंप सकती हैं. तब देवताओं ने भगवान शिव को परंपरा के अनुसार तैयार किया, सुंदर तरीके से श्रृंगार किया इसके बाद दोनों का विवाह सम्पन्न हुआ|
शिव भस्म क्यों लगाते हैं ?
मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल मंदिर में रोज भस्म आरती होती हैं, उज्जैन का महाकल मंदिर अपने आप में अद्भुत हैं | जानते हैं भस्म क्यों लगाते हैं महाकल ?
शिवपुराण की विधेश्वरसंहिता में भगवान शिव ने भस्म शब्द का अर्थ प्रकट किया है | जिस प्रकार राजा अपने राज्य
में सारभूत कर (टैक्स ) को ग्रहण करता है , जैसे मनुष्य सस्य (अनाज ) पौधे अदि से उत्पन्न होने वाली वस्तुऍ ) आदि को जलाकर उसका सार ग्रहण करते हैं तथा जैसे जठरानल नाना प्रकार के भक्ष्य , भोज्य आदि पदार्थो के सार को ग्रहण करके देह का पोषण करता है , उसी प्रकार शिव इस विध्यमान प्रपंच को जलाकर भस्म में सारतत्व को ग्रहण किया हैं | इसे दग्ध करके शिव ने उसके भस्म को अपने शरीर पर लगाया हैं | उन्होंने भस्म के बहाने जगत के सार को ही ग्रहण किया हैं |