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poem

माँ की यादें

जब – जब हथेली पर बनी
मेहंदी की टिकली देखती हूँ
मुझे अपनी माँ याद आ जाती हैं |

बिलकुल माँ की जैसी लगती है ये टिकली
कितनी सादी
कितनी सरल
सुकून से भरी , गर्माहट का अहसास दिलाती हैं |
सभ्य श्रृंगार – सी
आशीर्वाद देती। .. ये चांद -सी टिकली
माँ – सी नर्म छुअन का अहसास कराती हैं |

हथेली के निचाट अकेलेपन में भी
चूड़ियाँ की खनकती ध्वनि के घूंघट के पीछे से झांकती
अपनी मासूम अवस्थिति से पुरानी “मैं ” को नई “मैं” में बदलने का
सलोना मनुहार करती हैं |

दिल करता है – अपने हर श्रृंगार को मैं
मेहँदी की टिकली – सा कर लूँ
मैं हर तहर से सादी दिखना चाहती हूँ
मैं हर तरफ से
माँ लगना चाहती हूँ |

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