चमत्कारों से भरा है मां शारदा का शक्तिपीठ ‘मैहर’
माँ शारदा का प्राचीन और पहाड़ो से घिरा चमत्कारी मंदिर हैं , यहाँ आने वाला कभी भी खली हाथ नहीं जाता हैं , मंदिर इसे देवी पार्वती के 51 शक्तिपीठों में से एक भी माना जाता है। मैहर मध्य प्रदेश राज्य के सतना जिले में स्थित एक शहर है। मैहर नाम दो शब्दों ‘माई’+’हर'(हार) से मिलकर बना है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह उल्लेख किया गया है कि एक बार जब भगवान शिव माता सती के शरीर को लेकर घूम रहे थे, तो देवी सती (माई) का हार मैहर में गिर गया, इसलिए लोगों ने इसका नाम मैहर रखना शुरू कर दिया।
मैहर शहर माँ शारदा देवी मंदिर (लगभग 502 ई.) के लिए जाना जाता है, जो रेलवे स्टेशन से लगभग पाँच किलोमीटर दूर त्रिकूटा पहाड़ी की सबसे ऊँची चोटी पर स्थित है। पहाड़ी की चोटी तक पहुँचने के लिए 1063 सीढ़ियाँ हैं, वर्तमान में वहाँ रोपवे की सुविधा भी उपलब्ध है।
मैहर को भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए भी जाना जाता है। मैहर-सेनिया घराने के संस्थापक उस्ताद अलाउद्दीन खान मैहर से थे। उन्हें 1971 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उनके जाने-माने छात्र हैं: सितारवादक पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान।
मूर्ति -:
इष्टदेव मां शरदम्बल की मूर्ति पांच धातुओं से बनी है – तमिल में ऐम्पोन। यह समझा जाना चाहिए कि माँ शरदम्बिका, माँ महा सरस्वती ही हैं, जो उपाय भारती के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुईं और उन्होंने आचार्य श्री शंकर (भगवान शिव के अवतार) के शन्मथ स्थापना के माध्यम से सनातन धर्म की स्थापना के मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। माँ शरदंबिका उच्च बुद्धि की देवी हैं। माँ दयालु हैं और एक हाथ में शहद का बर्तन पकड़े हुए मुस्कुराती हैं, भक्तों को ठोड़ी मुद्रा दिखाती हैं और बाएं हाथ में पुस्तक दिखाती हैं। भक्त हमारे महान को देखते ही विद्वान बन जाएंगे। माँ।
कहानी -:
पुजारी से पहले कौन करता है पूजा
शारदा माता मंदिर के बारे में लोगों की मान्यता है कि इस मंदिर के पट बंद हो जाने के बाद जब पुजारी पहाड़ से नीचे चले आते हैं और वहां पर कोई भी नहीं रह जाता है तो वहां पर आज भी दो वीर योद्धा आल्हा और उदल अदृष्य होकर माता की पूजा करने के लिए आते हैं और पुजारी के पहले ही मंदिर में पूजा करके चले जाते हैं. मान्यता है कि आल्हा-उदल ने ही कभी घने जंगलों वाले इस पर्वत पर मां शारदा के इस पावन धाम की न सिर्फ खोज की, बल्कि 12 साल तक लगातार तपस्या करके माता से अमरत्व का वरदान प्राप्त किया था. मान्यता यह भी है कि इन दोनों भाइयों ने माता को प्रसन्न करने के लिए भक्ति – भाव से अपनी जीभ शारदा को अर्पण कर दी थी, जिसे मां शारदा ने उसी क्षण वापस कर दिया था.