कविता इम्मानुएल ( फाउंडर, डार्क इज ब्यूटीफुल कैम्पेन )
आज में आपको ऐसी महिला के बारे में बताने जा रही हूँ,
जिन्होंने एक सोच बदलने के लिए 18 देशों में एक पहल की |
कविता इम्मानुएल ( फाउंडर, डार्क इज ब्यूटीफुल कैम्पेन )
जिन्होंने एक सोच बदलने के लिए 18 देशों में एक पहल की |
कविता इम्मानुएल ( फाउंडर, डार्क इज ब्यूटीफुल कैम्पेन )
कविता इमैनुअल, वुमन ऑफ वर्थ, भारत की संस्थापक हैं। उनका मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय
और आंतरिक रूप से मूल्यवान है।
सुंदरता तो देखने वालों की आँखों में होती है | आतंरिक सुंदरता की बात अक्सर की जाती है, लेकिन सच तो यही है कि सदियों से हम सुंदरता को बाहरी चमक -दमक से ही मापते आए है |
लेकिन अब जबकि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, हमें इस सोच में बदलाव करने की जरूरत हैं |
जब हम त्वचा के रंग के आधार पर सौंदर्य की विषाक्त धारणाओं से लड़ते हैं, तो हमें यह याद रखने की आवश्यकता है कि हम कौन हैं, अपने पर्यावरण में बदलाव लाने की दिशा में पहला कदम है।
सोच में बदलाव के लिए अभियान
सोच में बदलाव के लिए अभियान
“कविता इमैनुएल, एनजीओ, वूमन ऑफ वर्थ के संस्थापक – एनजीओ, जिसे 2007 में कविता ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर स्थापित किया था, नियमित रूप से कार्यशालाओं और परामर्श सत्र आयोजित करके महिलाओं को सशक्त बनाने का काम करती है। 2009 में ,उन्होंने रंग पूर्वाग्रह के खिलाफ अपनी एकजुटता व्यक्त करने के लिए अपना डार्क इज ब्यूटीफुल अभियान चलाया। कविता ने कहा, “हम सभी जानते हैं कि रंग-आधारित भेदभाव प्रचलित है। युवा महिलाओं की काउंसलिंग के हमारे अनुभव ने हमें एहसास दिलाया है कि यह वास्तव में संवेदनशील मुद्दा है और लोग बाहर आकर इसके बारे में बोलना नहीं चाहते हैं।”
जब पूरी दुनिया में लोगो की सोच एक जैसी बनेगी | लोगो को जागरूक करने के साथ – साथ राष्ट्रीय स्तर पर और कारपोरेट स्तर पर नीतियों में बदलाव को भी जरूरत है | खासकर विज्ञापन के क्षेत्र में बड़े परिवर्तन जरुरी हैं |
मैट्रिमोनियल विज्ञापनों से लेकर फेयरनेस क्रीम तक, ज्यादातर विज्ञापन हल्की स्किन टोन को सफलता और डार्क टोन को फेल करने या कुछ बेहतर करने के लिए कहते हैं। “सफल होने का विचार हमारी संस्कृति में गहराई से समाहित है, हालांकि हाल के दिनों में, हमने देखा है कि विज्ञापनदाताओं को विचार की पारंपरिक रेखा से दूर रखा गया है। लेकिन लोगों को अपने गहरे रंग के लिए स्वीकार किए जाने की जरूरत है।
सोच बदलने का नजरिया -: रंग को लेकर सुंदरता का जो पैमाना है, उसे बदलना आसान नहीं है ,
लेकिन कहीं न कहीं से तो शरूआत करनी पड़ेगी | तो क्यों न यह शरूआत परिवार से हो | और परिवार में भी बच्चों से | बच्चों के दिमाग में सौंदर्य के नए प्रीतिमान बनाए जा सकते है सुंदरता का रंग से कोई संबंध नहीं है | माता – पिता को अपने बच्चों के सामने गोरी रंगत का महंत्व नहीं देना चाहिए |
अपने बच्चों की त्वचा की रंगत में निखार की कतई कोशिश नहीं करनी चाहिए, बल्कि त्वचा की सेहत पर ध्यान देना चाहिए |
त्वचा की सुंदरता अच्छे स्वास्थ्य पर निर्भर करती है न की त्वचा की रंगत पर |
इसी नजरिये को बदलने की जरूरत है,
सुंदरता कभी भी आंतरिक सौंदर्य के बिना पूर्ण नहीं हो सकती | आंतरिक सौंदर्य यानी हमरे मन की सुंदरता
शरीर , मन तथा आत्मा का सौम्य मिश्रण ही हमारे अस्तित्व को सम्पूर्णता प्रदान करता है | सुंदरता को शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक यानी समग्र रूप में देखा जाना चाहिए | प्राचीन भारतीय ऋषि – मुनियों ने भी आंतरिक आत्मा या मन को सुंदरता का प्राणतत्व माना है | योग, प्राणायाम तथा ध्यान समग्र सुंदरता को बढ़ाने में मददगार हो सकते है |
जब पूरी दुनिया में लोगो की सोच एक जैसी बनेगी | लोगो को जागरूक करने के साथ – साथ राष्ट्रीय स्तर पर और कारपोरेट स्तर पर नीतियों में बदलाव को भी जरूरत है | खासकर विज्ञापन के क्षेत्र में बड़े परिवर्तन जरुरी हैं |
मैट्रिमोनियल विज्ञापनों से लेकर फेयरनेस क्रीम तक, ज्यादातर विज्ञापन हल्की स्किन टोन को सफलता और डार्क टोन को फेल करने या कुछ बेहतर करने के लिए कहते हैं। “सफल होने का विचार हमारी संस्कृति में गहराई से समाहित है, हालांकि हाल के दिनों में, हमने देखा है कि विज्ञापनदाताओं को विचार की पारंपरिक रेखा से दूर रखा गया है। लेकिन लोगों को अपने गहरे रंग के लिए स्वीकार किए जाने की जरूरत है।
सोच बदलने का नजरिया -: रंग को लेकर सुंदरता का जो पैमाना है, उसे बदलना आसान नहीं है ,
लेकिन कहीं न कहीं से तो शरूआत करनी पड़ेगी | तो क्यों न यह शरूआत परिवार से हो | और परिवार में भी बच्चों से | बच्चों के दिमाग में सौंदर्य के नए प्रीतिमान बनाए जा सकते है सुंदरता का रंग से कोई संबंध नहीं है | माता – पिता को अपने बच्चों के सामने गोरी रंगत का महंत्व नहीं देना चाहिए |
अपने बच्चों की त्वचा की रंगत में निखार की कतई कोशिश नहीं करनी चाहिए, बल्कि त्वचा की सेहत पर ध्यान देना चाहिए |
त्वचा की सुंदरता अच्छे स्वास्थ्य पर निर्भर करती है न की त्वचा की रंगत पर |
इसी नजरिये को बदलने की जरूरत है,
सुंदरता कभी भी आंतरिक सौंदर्य के बिना पूर्ण नहीं हो सकती | आंतरिक सौंदर्य यानी हमरे मन की सुंदरता
शरीर , मन तथा आत्मा का सौम्य मिश्रण ही हमारे अस्तित्व को सम्पूर्णता प्रदान करता है | सुंदरता को शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक यानी समग्र रूप में देखा जाना चाहिए | प्राचीन भारतीय ऋषि – मुनियों ने भी आंतरिक आत्मा या मन को सुंदरता का प्राणतत्व माना है | योग, प्राणायाम तथा ध्यान समग्र सुंदरता को बढ़ाने में मददगार हो सकते है |