poem

कविता हिंदी में

एक टुकड़ा धूप से, फल निकल जाते हैं,

मिट्टी की परतों को चीर, बीज निकल जाते हैं,

तिनके के सहारे से, दरिया पार कर जाते हैं,

हौसला बुलंद हो जब, तो हाथ पतवार बन जाते हैं।

हर किसी के जीवन में, कुदरत ने सब कुछ नहीं बांटा,

कहीं धूप तो कहीं छाव हैं ज्यादा, कहीं शोर तो कहीं सन्नाटा,

जिनके हिस्से धूप हैं ज्यादा, कदम उन्हें बढ़ाना है,

उन अंधियारे गलियारों में, जुगनू रोशन कर जाना है,

इस खयाल की ‘अनुभूति’ कर, नई ऊर्जा को ‘नमन’ करे,

अपने भीतर के जुगनू से, अंधियारों को रोशन करें ।।

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